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Saturday, 17 October 2020

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार पुलिस से पूछा- दहेज हत्या के आरोपी को अरेस्ट करने में क्यों लगाए 21 साल ?

नई दिल्ली एक कहावत है कि कानून के हाथ लंब होते हैं, लेकिन इन लंबे हाथों का क्या फायदा जब इंसाफ पीड़ित को दिलाने में इतनी सुस्ती रखी जाए कि दो दशक से भी ज्यादा समय बीत जाए। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक और एचसी रजिस्ट्रार जनरल से से सवाल किया कि आखिरकार दहेज हत्या मामले के आरोपी को गिरफ्तार करने में बिहार पुलिस को 21 साल लंबा वक्त क्यों लग गया। इसके अलावा कोर्ट ने स्पष्टीकरण मांगा कि बिहार हाईकोर्ट के फैसले को वेबसाइट पर अपलोड करने में 733 दिन का वक्त कैस लग गया। जस्टिस एनवी रमना, सूर्यकांत और अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने बीएसएनएल के एक कर्मचारी को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिस पर फरवरी 1999 में दहेज के लिए अपनी पत्नी के हत्या करने का आरोप लगाया गया था। पीठ ने पाया कि उसकी मृत्यु शादी के सात साल के भीतर हुई। वहीं पीड़िता और उसके मायके वालों से लंब समय तक लगातार दहेज को लेकर दबाव बनाया जा रहा था। रिपोर्ट में विवाहिता के शरीर में पाया गया था जहर पीड़िता के भाई ने फरवरी 1999 में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसकी बहन को बीएसएनएल के कर्मचारी बच्चा पांडे और उसके परिवार ने लगातार परेशान किया था और उसे उसके ससुराल से निकाल दिया। एक समझौते के बाद वह पति के साथ रहने चली गई लेकिन एक दिन अचानक उसके अंतिम संस्कार के बाद उसके परिवार को उसकी मौत की सूचना दी गई। लगभग 10 साल के बाद बिहार पुलिस ने दहेज हत्या के लिए आरोपी बच्चा पांडे सहित एफआईआर में नामजद आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत का दावा करते हुए आरोप पत्र दायर किया। पटना HC ने पांडे को जमानत देने से इनकार कर दिया। वहीं पुलिस के अनुसार जांच में मृतका की आंत की में बहुत ही जहरीला पदार्थ पाया गया था। पुलिस ने नहीं की गई कोई कार्रवाई न्यायमूर्ति रमना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि आरोपों की गंभीरता के बावजूद, यह काफी चिंताजनक है कि पांडे के खिलाफ पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई। घटना के 21 साल से अधिक समय बीत जाने और प्राथमिकी दर्ज करने के बाद, आरोपी पांडे को केवल इस साल 7 जून को इस मामले में गिरफ्तार किया गया। पीठ ने कहा कि उसकी जमानत याचिका को ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया है, उसके बाद एचसी ने सुनवाई की। 'चार सप्ताह में दें रिपोर्ट' पांडे को जमानत देने की घोषणा करते हुए, पीठ ने कहा कि माना जाता है कि याचिकाकर्ता भारत संचार निगम लिमिटेड के साथ काम करने वाला एक केंद्र सरकार का कर्मचारी है, लेकिन एक विवाहिता की मौत से जुड़े गंभीर अपराध के संबंध में अभियुक्तों की जांच और अभियोजन चलाने में देरी के चलते उसकी मौत का कारण स्पष्ट नहीं हैं। हम वर्तमान पुलिस विभाग के महानिदेशक, बिहार के साथ-साथ पटना हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी करना आवश्यक समझते हैं, ताकि वर्तमान मामले के विवरणों के बारे में हमारे सामने एक रिपोर्ट पेश की जा सके। इस तरह की बेवजह देरी के पीछे के कारण, पर पीठ ने कहा कि चार सप्ताह में रिपोर्ट मांगी जाए। फैसला अपलोड करने में क्यों लगे 733 दिन? जस्टिस संजय किशन कौल और दिनेश माहेश्वरी की एक अन्य पीठ ने 24 जनवरी, 2018 को पटना हाईकोर्ट द्वारा एक निर्णय की घोषणा और 1 मई, 2019 को HC की वेबसाइट पर अपलोड करने के बीच 733 दिनों के समय को लेकर काफी हैरानी जताई। पीठ ने कहा कि वकील द्वारा बताई गई 733 दिनों की अघोषित देरी है। यह पहलू रजिस्ट्रार द्वारा सत्यापित किया जाना चाहिए। पीठ ने पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से रिपोर्ट सौंपने के लिए 28 अक्टूबर तक का समया दिया है।


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